काश कि मुक्ति बाँध ले तुम्हें || आचार्य प्रशांत, बाबा बुल्लेशाह पर (2019)

2024-04-09 3

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वीडियो जानकारी: शब्दयोग सत्संग , 06.07.2019 , ग्रेटर नॉएडा

प्रसंग:

मुरली बाज उठी अणघातां
सुन-सुन भुल्ल गईआं सभ बातां ।

लग्ग गए अनहद बान न्यारे, झूट गए दुनियां कूड़ पसारे ।
साईं मुक्ख वेखन दे वणजारे, दुइयां भुल्ल गईआं सभ बातां ।

हुण आशा चंचल मिरग फहाया, ओसे मैं बन्न्ह बहाया।
हरफ दुगाना उसे पढ़ाया, रह गईआं दो चार रोकातां।

बुल्लाशाह शाह मैं तद बिरलाई, जद दी मुरली कान्ह बजाई।
बावरी होई तें तें वल्ल धाई, खोजियां कित वल दस्त बरातां ।
~ बाबा बुल्लेशाह

~ मुक्ति हमें कैसे बाँधती है?
~ अनहद की मुरली कैसे सुनाई देती है?
~ मन का प्राकृतिक स्वभाव क्या है?
~ क्या प्रयास से मुक्ति मिलती है?
~ क्या मुक्ति हमारा चुनाव है?


संगीत: मिलिंद दाते
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